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विपदा या मुसीबत भक्त के जीवन को निखारने के लिए आते, भगवान अपने भक्त की हर शाम मदद के लिए तैयार–साध्वी सुश्री वैष्णवी भारती

पंजाब/ बटाला (आजाद शर्मा )

दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से ज्ञान की पयस्विनी श्रीमद्भागवत साप्ताहिक कथा ज्ञानयज्ञ के तीसरे दिवस में सर्व श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी सुश्री वैष्णवी भारती  ने प्रहलाद प्रसंग के माध्यम से भक्त और भगवान के संबंध का मार्मिक चित्रण किया।

प्रहलाद के पिता हिरण्यकश्यपु के द्वारा उसे पहाड़ की चोटी से नीचे फेंका गया, विषपान करवाया, मसत हाथी के आगे डाला गया। परंतु भक्त प्रहलाद भक्तिमार्ग से विचलित न हुए। विपदा या मुसीबत भक्त के जीवन को निखारने के लिए आते हैं। जिस प्रकार से सोना आग की भुट्टी में तप कर ही कुंदन बनता है। ठीक वैसे ही भक्ति की चमक विपदाओं के आने पर ही देदीप्यमान होती है।

दूसरी बात यह कि जो भीतर की शक्ति को नहीं जानता, वह इनसे घबराते है, समाज में युवा ही बदलाव लाते हैं, युवा में अदभुत शक्ति समाहित होती है। असंभव कार्य को संभव करना युवाओं को ही आता है। जब जब भी समाज का कायाकल्प करने के लिये नौजवान आगे बढ़े, तब समाज ने नूतन परिवर्तन सामने पाया | संकट चाहे सीमाओं का हो या राजनैतिक, इस के निवारण के लिये युवक युवतियों ने बढ़चढ़ कर भाग लिया है। परंतु आज युवा पथभष्ट हो चुका है। नशाखोरी अश्लीलता, चरित्रहीनता आदि व्यसन उन के जीवन में आ चुके हैं| उन्हें देश, समाज से कुछ लेना देना नहीं है।

हमें समझना होगा कि यौवन इस बात पर निर्भर नहीं करता है कि हम कितने छोटे हैं, अपितु इस पर कि हम में विकसित होने की क्षमता एवं प्रगति करने की योग्यता कितनी है। विकसित होने का अर्थ है अंतरनिहित शक्तियों का जागरण। जब शक्ति का जागरण होता है तो सर्वप्रथम व्यक्ति मानव बनता है| फिर वह अपनी संस्कृति से प्रेम करता है। तब मां भारती के लिए मर मिटने की भावनाएं पैदा होती है। आध्यात्मिक ऊर्जा के मन में स्पंदित होते ही कर्तव्य बोध, दिशा बोध का भान होता है। जब दिशा का पता चलता है तो दशा सुधर जाती है। स्वामी विवेकानंद जी, स्वामी रामतीर्थ जी महान देशभक्त हुए हैं। इन्होने विदेशों में जाकर भारतीय संस्कृति का बिगुल बजाया तो इसके पीछे आध्यात्मिक शक्ति ही कार्यरत थी। श्रीमद भगवदगीता युवकों का आहवान करती है कि ब्रह्मज्ञान को प्राप्त कर अपनी ऊर्जा को पहचानें |

अर्जुन जैसा नवयुवक आत्मजान को प्राप्त कर अपनी शक्ति को पहचान पाया था। स्वामी विवेकानंद जी ने कहा मैं युवाओं में लोहे की मांस पेशिया और फौलाद की नस नाड़ियां देखना चाहता हूं। भारत में शिक्षित युवाओं का होना सौभाग्य की बात है। विवेकवान जाग्रत युवाओं का होना परम सौभाग्य की बात है। अघासुर की लीला से प्रभु ने बताया के भोग विषयों के समान हैं जो हमें अपनी ओर खींचते हैं। परंतु ये अपूर्ण हैं। ये अशांति के अतिरिक्त कुछ नहीं दे सकते। अध्यात्म की शरण में जाने से परम शांति की अनुभूति होती है।


अगनी में बैठे भक्त की प्रभु ने रक्षा की। होलिका जल कर राख हो गयी | आज भी होलिका दहन का प्रचलन है। होली जिन रंगों से खेली जाती है, वे रंग तो पानी से धूल जाते हैं परंतु जो ईश्वर दर्शन कर भीतरी जगत में भक्ति के रंगों से होली मनाता है- वह विचित्र है | क्योंकि वे रंग और प्रगाढ़ हो जाते हैं। जन्मों जन्म के लिये भगवान से संबंध स्थापित होता है।

होली उत्सव कथा में मनाया गया| उसके पशचात भक्त की रक्षा करने प्रभु स्तम्भ में से प्रकट होते हैं। नरसिंह अवतार धारण कर उन्होंने अधर्म और अन्याय को समाप्त कर सत्य की पताका को फहराया।आज के इस कथा प्रसंग में श्री राजीव खोसला जी,श्री राजीव खुलर जी, श्री राजीव डोगरा जी, श्री रमेश भाटिया जी, श्रीमती कविता गोयल जी, श्री अश्वनी महाजन जी, श्री संदीप शर्मा जी, स. हरजीत सिंह जी, स. सुखदेव सिंह जी, श्री अश्वनी बंसल जी, श्री गौतम गुप्ता जी, श्री राकेश अग्रवाल जी, श्री राजीव अग्रवाल जी, श्री संजय अग्रवाल जी, स.अमरजीत सिंह जी मुख्य मेहमान उपस्थित थे।

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