टारगेट पोस्ट, मेलबर्न ।
दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान, मेलबर्न की ओर से एक विलक्षण कार्यशाला “साइंस vs वेद” का आयोजन किया गया, जिसमें संस्थान के संस्थापक व संचालक *गुरुदेव सर्व श्री आशुतोष महाराज* जी के शिष्य स्वामी डॉ. सर्वेश्वर जी ने बताया कि भारतीय संस्कृति विश्ववारा संस्कृति है।
जहाँ समय की रेत के नीचे बेबीलोन, रोमन जैसी समृद्ध सभ्यताएँ दब कर नष्ट हो गईं, वहीं भारतीय संस्कृति आज भी अपने सम्पूर्ण यौवन पर देदीप्यमान है। इसका कारण है कि भारतीय संस्कृति भौतिकता की बैसाखियों पर नहीं टिकी अपितु अध्यात्म ज्ञान की दृढ़ नींव पर विराजित है।
इसी अध्यात्म ज्ञान के वाहक रहे हैं भारत के आर्ष ग्रन्थ वेद। वेद, जिन्हें हम संस्कृत के मंत्रों से भरी पुरानी किताबें कह कर तिरस्कृत कर देते हैं, वो वास्तव में ज्ञान- विज्ञान को समेटे अद्भुत ग्रन्थ हैं। जिसमें जीवन के बाहरी पक्षों के साथ-साथ मानव जन्म के परम रहस्य को भी निहित किया गया है। किन्तु दुःख की बात है कि आज अधिकतर लोग वेदों में निहित इस विज्ञान का वास्तविक मर्म ही नहीं जानते।
तभी तो आज हमारे पास वैदिक ज्ञान का भंडार होने के बावजूद भी अशान्ति, तनाव व टेंशन सुरसा के मुख की मानिंद बढ़ते ही चले जा रहे हैं। इसका प्रमुख कारण है हमारा वैदिक विज्ञान के सम्बंध में अल्पज्ञान। आज हमें लगता है कि अगर हमने वैदिक चिन्हों को धारण कर लिया तो हम धार्मिक बन गए। परन्तु नहीं। वेदों के सिद्धान्त, प्रथाएं, चिन्ह बिल्कुल वैसे हैं जैसे किसी शव का सोलह श्रृंगार कर दिया जाए तो कोई भी यह नहीं कहता कि उसे वह शव बहुत प्रिय लग रहा है। क्योंकि आत्मा के अभाव में उस श्रृंगार की शरीर पर कोई कीमत नहीं है। अतः हमें भी ज़रूरत है वेदों की आत्मा को प्राप्त करने की। वेदों की आत्मा है इसका सनातन ज्ञान अर्थात ब्रह्मज्ञान। यानी उस आत्म तत्व के प्रकाश रूप का प्रत्यक्ष दर्शन अपने घट में प्राप्त करना। और इसके लिए ज़रूरत है समय के पूर्ण ब्रह्मनिष्ठ सद्गुरु की, जो हमारे मस्तक पर हाथ रख हमें तत्क्षण उस ब्रह्मज्योति का साक्षात्कार हमारे घट में करवा देते हैं। यही तथ्य तो हमारे देश का नाम प्रतिपादित कर रहा है। भारत अर्थात- भा+रत, भा का अर्थ है प्रकाश। अतः वह देश जहाँ का प्रत्येक व्यक्ति ब्रह्मज्योति के सनातन प्रकाश में रत है, वहीं सच्चा वैदिक भारत है। ऐसी वैदिक ऋषियों की संतानें फिर कभी अशांति या तनाव से ग्रसित नहीं होते, अपितु वह तो सच्चिदानंद के आनंद में सदैव निमग्न रहती हैं। इस अवसर पर स्वामी जी ने विभिन्न मनोरंजक गतिविधियों व वैज्ञानिक मॉडल्स के माध्यम से वेदों के गूढ़ ज्ञान को सभी के समक्ष प्रस्तुत किया।