बटाला ( अशोक लूना) –
“हमारी सांस्कृतिक, सामाजिक एवं आर्थिक पृष्ठभूमि भले ही अलग अलग क्यों न हो किन्तु जब हम सभी में समाये हुए इस परमात्मा के दर्शन करके सबसे प्रेम करते हैं तब हम सहज ही एकत्व के सूत्र में बंध जाते हैं।” यह दिव्य प्रतिपादन निरंकारी सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने रविवार सांय मीरा-भाईंदर स्थित काशिमीरा के घोडबंदर मैदान में आयोजित निरंकारी सन्त समागम में उपस्थित श्रद्धालु भक्तों को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किये।
सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज एवं निरंकारी राजपिता रमित जी की पावन छत्रछाया में आयोजित इस एक दिवसीय संत समागम में समूचे मुंबई महानगर एवं आसपास के क्षेत्रो से हजारों की संख्या में इतने अधिक श्रद्धालु भक्त एवं मुंबई नगरवासी सम्मिलित हुए की मानव परिवार का विशाल जन समूह प्रदर्शित हो रहा था जिसका स्वरूप देखते ही बनता था। सभी भक्तों ने दिव्य युगल का दर्शन कर उनके पावन प्रवचनों से लाभ प्राप्त करते हुए सत्संग का भरपूर आनंद प्राप्त किया।
सतगुरु माता जी ने एकत्व के सुंदर भाव को पुष्प के उदाहरण द्वारा समझाया कि जब हम किसी बगीचे में जाते है तो हमें वहां भिन्न भिन्न प्रकार के पुष्प दिखाई देते है। सभी का रूप, रंग, गंध भिन्न भिन्न होती है। उन पुष्पों में अलग विशेषता होने के उपरांत भी हम उनसे सुगन्ध लेते हैं। ठीक इसी प्रकार यदि हम मनुष्य के प्रति भी यही भावना रखें की सभी परमात्मा की रचना है, सब में इसी का नूर है तो मन में ऊँच-नीच का भेद कभी नज़र ही नहीं आयेगा।
एक संतुलित जीवन जीने की युक्ति को समझाते हुए सतगुरु माता जी ने फरमाया कि हमें भक्ति मार्ग को अपनाना है। यदि हम अपने अंदर अच्छी बातों का समावेश करते हुए बुराईयों से दूर हो जाये तो निश्चित रूप से हमारे जीवन में निखार आ जायेगा। हमें अपने अंदर मानवीय गुणों का विकास इस प्रकार से करना है कि वह हर समय हमारे व्यवहार एवं आचरण में दिखाई दें क्योंकि हमारे चरित्र में ही जब प्रेम, करुणा, मिठास एवं विशालता जैसे दिव्य गुण समाहित होंगे तब हमारे साथ कोई कैसा भी व्यवहार करें, हमारा बर्ताव हर किसी के साथ अच्छा ही रहेगा।
निरंकारी राजपिता जी ने अपने सम्बोधन में पूर्ण सतगुरु की महत्ता को समझाते हुए अपने फरमाया कि हमारे जीवन में जब तक पूर्ण सतगुरु नहीं आता तब तक हमें सत्य का बोध नहीं होता। सत्य के अभाव में हम भ्रमों के सहारे ही अपना शेष जीवन व्यतीत कर देते है। माया से प्रभावित होकर हमारे मन में यहीं धारणा बन जाती है कि ऐश्वर्य युक्त जीवन जीना ही वास्तविक जीवन है और यही हमारा परम् लक्ष्य भी है किन्तु सत्यता तो यही है कि मनुष्य जिस माया को सब कुछ मान बैठा है वह वास्तव में क्षणिक सुख है। सतगुरु हमें शाश्वत, स्थिर परमात्मा का बोध करवाकर यही समझाने का प्रयत्न करते है कि परमात्मा को जानकर इससे इकमिक होना ही हमारे जीवन का परम् लक्ष्य है तभी हम सच्चे मनुष्य बन सकते है।
मेम्बर इंचार्ज, प्रचार प्रसार आदरणीय श्री मोहन छाबड़ा ने सतगुरु माता जी एवं निरंकारी राजपिता जी का सभी संतों को पावन आशीष प्रदान करने हेतु धन्यवाद किया और साथ ही प्रशासन के सराहनीय सहयोग हेतु भी धन्यवाद दिया। इस विशाल संत समागम में अनेक गणमान्य अतिथियों जिनमें मुख्यतः भारत सरकार की महिला एवं बाल विकास मंत्री माननीय अदिति तटकरे, विधायक प्रताप सरनाईक एवं विधायक श्रीमती गीता जैन ने सम्मिलित होकर दिव्य युगल के दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त किये। निसंदेह यह पावन संत समागम एकत्व के सुंदर भाव को प्रदर्शित करते हुए सभी के लिए प्रेरणादायक रहा।