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मेलबर्न (आजाद शर्मा)

माता सती ने भगवान श्री राम की परीक्षा लेने के लिए माता सीता का रूप धरण कर वन में पहुंचकर भगवान राम एवं भगवान लक्ष्मण के आगे चलने लग पड़े। सबसे पहले भगवान लक्ष्मण ने पहचान लिया कि यह उनकी भाभी ( माता सीता ) नहीं हो सकती क्योंकि माता-पिता सदैव ही भगवान राम के पीछे चलती थी।

वहीं भगवान राम ने माता सीता का रूप धारण कर चुकी माता सती को माता कहकर संबोधन किया एवं कहा कि वह बिना भोलेनाथ के इस वन में क्या कर रही है। माता सती यह देखकर वापस भगवान शिव के पास पहुंच गए। भगवान शिव ने जब ध्यान लगाकर देखा की माता सती भगवान राम की परीक्षा लेने के लिए माता सीता का रूप धारण कर गई है तो उन्होंने इस समय माता सती से इस तरह की परीक्षा लेने के बाद से माता सती को माता सीता की तरह मानना शुरू कर दिया।

ओम फाउंडेशन की तरफ से आयोजित बालकांड श्री रामचरितमानस पाठ के गुणगान दौरान पुजारी पुनीत ठाकुर ने कहे। उन्होंने बताया कि माता सती के पिता दक्ष राज भगवान शिव को नहीं मानते थे। उनकी लगन भगवान विष्णु में थी। उन्होंने बताया कि दक्ष प्रजापति ने एक विशाल यज्ञ करवाया लेकिन उन्होंने भगवान शिव एवं सती को नहीं बुलाया। माता सती बिना बुलाए ही हवन यज्ञ में पहुंच गई। इस दौरान उनके पिता ने भगवान शिव का अपमान किया तो अपमान सहन ना करती हुई माता सती हवन यज्ञ में खुद को भस्म कर दिया। समाधि में लीन भगवान शिव को जब एहसास हुआ कि कुछ अनहोनी हुई है तो उन्होंने हवन यज्ञ में पहुंचकर माता सती को अर्धजलि अवस्था में उठाकर क्रोध में आकर दक्ष प्रजापति को मार गिराया।

बताते हैं कि इसके बाद भगवान शिव माता सती के वियोग में देखते हुए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के भिन्न भिन्न अंग कर दिए। बताते हैं कि जहां-जहां माता सती के शरीर के अंग गिरे वहां पर माता के तीर्थ स्थल बने। कामाख्या देवी, भद्राकाली देवी, चिंतपूर्णी देवी, ज्वाला माता, नैना देवी सहित अन्य तीर्थ स्थल भारत में मौजूद है एवं श्रद्धालु अलग-अलग तीर्थ स्थलों पर नतमस्तक होते हैं। पुजारी पुनीत ठाकुर ने बताया कि इसके बाद भगवान शिव समाधि में लीन हुए तो भगवान शिव को समाधि से बाहर लाने के लिए देवताओं ने ब्रह्मा जी से कहकर कामदेव को आह्वान किया। बताते हैं कि कामदेव ने बड़े प्रयास किए, लेकिन भगवान शिव की समाधि नहीं हिला सके। कामदेव ने एक बात का प्रयोग कर भगवान शिव की समाधि खोली। पुजारी पुनीत ठाकुर ने बताया कि भगवान शिव की समाधि खुलने के बाद उन्होंने कामदेव को भस्म कर दिया। ब्रह्मा जी एवं देवताओं के प्रार्थना के बाद कामदेव को बिना शरीर के अदृश्य रूप में जिंदा कर दिया। बताते हैं कि यह सब सृष्टि की रचना के लिए एवं भगवान शिव का माता पार्वती से विवाह के लिए किया गया था।

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